सोच रहा हूँ मर ही जाऊ आज…
शायद कब्र पर ही कोई गुलाब ले आये…!
सोच रहा हूँ मर ही जाऊ आज…
शायद कब्र पर ही कोई गुलाब ले आये…!
हथेलियों पर मेहँदी का ज़ोर ना डालिये,
दब के मर जाएँगी मेरे नाम कि लकीरें…
जनाजा मेरा देखकर….बोली वो….!!
वो ही मरा क्या, जो मुझ पर मरता था….!!!
जिसकी मुहब्बत में मरने के लिए तैयार थे हम
आज उसी की बेवफाई ने हमे जीना सीखा दिया
एक निवाले के लिए मैंने जिसे मार दिया,
वह परिन्दा भी कई दिन का भूखा निकला ।
बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं
शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊँ
ये मोहब्बत है, सुन, ज़माने, सुन!
इतनी आसानियों से मरती नहीं
मैं जो कहता हूँ कि मरता हूँ तो फ़रमाते हैं
कारे-दुनिया न रुकेगा तेरे मर जाने से
बाद मरने के मिली जन्नत ख़ुदा का शुक्र है
मुझको दफ़नाया रफ़ीक़ों ने गली में यार की
बाद मरने के मिली जन्नत ख़ुदा का शुक्र है
मुझको दफ़नाया रफ़ीक़ों ने गली में यार की