Muhabbat

हम तो वो हैं जो आँखों में आँखें डाल के सच जान लेते हैं
तुझसे मुहब्बत है बस इसलिये तेरे झूठ को भी सच मान लेते हैं…!

Zindgi

हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है, कभी तिरपाल कटता है ।
दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क़ आँखें, तो दिखाने दो
कभी बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है 

Shakl

शक्ल जब बस गई आँखों में तो छुपना कैसा
दिल में घर करके मेरी जान ये परदा कैसा

Palake

आँखों में तेरी ज़ालिम छुरियाँ छुपी हुई हैं 
देखा जिधर को तूने पलकें उठाके मारा

Bebaak

बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

Tasveer

पलकों पे लरजते अश्कों में तसवीर झलकती है तेरी. 
दीदार की प्यासी आँखों को, अब प्यास नहीं और प्यास भी है.