अब तो कर दे इजहार तू मुझसे प्यार का,
देख अब तो मोहब्बत का महीना भी आ गया
अब तो कर दे इजहार तू मुझसे प्यार का,
देख अब तो मोहब्बत का महीना भी आ गया
बूए-गुल, नाला-ए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला।
चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला।
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के
मैं तबाह हूँ तेरे प्यार में और तुझे दूसरों का ख्याल है….
कुछ तो मेरे मसले पर गौर कर मेरी जिन्दगी का सवाल है…
जब हम दिल को समझाने लगते है
कि वो हमे कभी नही मिल सकते..
ना जाने क्यों
तब मोहब्बत और ज्यादा होने लगती है..
अच्छा करते हैं वो लोग जो मोहब्बत का इज़हार नहीं करते,
ख़ामोशी से मर जाते हैं मगर किसी को बदनाम नहीं करते…
तुम एक तकिये में गीले बालों की भर के ख़ुश्बू
जो आज भेजो…
तो नींद आ जाए, सो ही जाऊँ…
हम तो वो हैं जो आँखों में आँखें डाल के सच जान लेते हैं
तुझसे मुहब्बत है बस इसलिये तेरे झूठ को भी सच मान लेते हैं…!
चाहे दर्द मिला या सुकुन पाया,
पर सुन, तेरा शुक्रिया, तुने इश्क से मिलवाया
शरारती ठंड मे……
जिद्दी धूप सा है तुम्हारा इश्क…….