Nigahon se jara sa wo kare yoo war chutki main

निगाहों से जरा-सा वो करे यूँ वार चुटकी में
हिले ये सल्तनत सारी, गिरे सरकार चुटकी में

न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों से
करे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में

कहो सीखे कहाँ से हो अदाएँ मौसमी तुम ये
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे

झटककर ज़ुल्फ़ को अपनी, कभी कर के नज़र नीची
सरे-रस्ता करे वो हुस्न का व्योपार चुटकी में

नहीं दरकार है मुझको, करूँ क्यों सैर दुनिया की
तेरे पहलु में देखूँ जब, दिशाएँ चार चुटकी में

कई रातें जो जागूँ मैं तो मिसरा एक जुड़ता है
उधर झपके पलक उनकी, बने अशआर चुटकी में

हुआ अब इश्क ये आसान बस इतना समझ लीजे
कोई हो आग का दरिया, वो होवे पार चुटकी में

Gautam rajrishi

Jara dhoop faili jo chubhti kadakti

जरा धूप फैली जो चुभती कड़कती
हवा गर्म चलने लगी है ससरती

पिघलती सी देखी
जो उजली ये वादी
परिंदों ने की है
शहर में मुनादी

दरीचे खुले हैं
सवेर-सवेरे
चिनारों पे आये
हैं पत्‍ते घनेरे

हँसी दूब देखो है कैसे किलकती

ये सूरज जरा-सा
हुआ है घमंडी
कसकती हैं यादें
पहन गर्म बंडी

उठी है तमन्ना
जरा कुनमुनायी
खयालों में आकर
जो तू मुस्कुरायी

ये दूरी हमारी लगे अब सिमटती

बगानों में फैली
जो आमों की गुठली
सँभलते-सँभलते
भी दोपहरी फिसली

दलानों में उड़ती
है मिट्टी सुगंधी
सुबह से थकी है
पड़ी शाम औंधी

Gautam rajrishi

Poochhe to koi jaakar ye kunbo ke sardaro se

पूछे तो कोई जाकर ये कुनबों के सरदारों से
हासिल क्या होता है आखिर जलसों से या नारों से

रोजाना ही खून-खराबा पढ़ कर ऐसा हाल हुआ
सहमी रहती मेरी बस्ती सुबहों के अखबारों से

पैर बचाये चलते हो जिस गीली मिट्टी से साहिब
कितनी खुश्बू होती है इसमें पूछो कुम्हारों से

हर पूनम की रात यही सोचे है बेचारा चंदा
सागर कब छूयेगा उसको अपने उन्नत ज्वारों से

जब परबत के ऊपर बादल-पुरवाई में होड़ लगी
मौसम की इक बारिश ने फिर जोंती झील फुहारों से

उपमायें भी हटकर हों, कहने का हो अंदाज नया
शब्दों की दुनिया सजती है अलबेले फनकारों से

ऊधो से क्या लेना ’गौतम’ माधो को क्या देना है
अपनी डफली, सुर अपना, सीखो जग के व्यवहारों से

Gautam rajrishi

Ye tera yoo machalna kya

ये तेरा यूँ मचलना क्या
मेरे दिल का तड़पना क्या

निगाहें फेर ली तू ने
दिवानों का भटकना क्या

सुबह उतरी है गलियों में
हर इक आहट सहमना क्या

हैं राहें धूप से लथ-पथ
कदम का अब बहकना क्या

दिवारें गिर गयीं सारी
अभी ईटें परखना क्या

हुआ मैला ये आईना
यूँ अब सजना-सँवरना क्या

है तेरी रूठना आदत
मनाना क्या बहलना क्या

Gautam rajrishi

Seekho aankhen padhna sahib

सीखो आँखें पढ़ना साहिब
होगी मुश्किल वरना साहिब

सम्भल कर इल्जाम लगाना
उसने खद्‍दर पहना साहिब

तिनके से सागर नापेगा
रख ऐसे भी हठ ना साहिब

दीवारें किलकारी मारे
घर में झूले पलना साहिब

पूरे घर को महकाता है
माँ का माला जपना साहिब

सब को दूर सुहाना लागे
क्यूं ढ़ोलों का बजना साहिब

कायनात सारी ठहरा दे
उस आँचल का ढ़लना साहिब

Gautam rajrishi

Bas gai hai rag rag main baamo dar ki khamoshi

बस गयी है रग-रग में बामो-दर की ख़ामोशी
चीरती-सी जाती है अब ये घर की ख़ामोशी

सुब्‍ह के निबटने पर और शाम ढलने तक
कितनी जानलेवा है दोपहर की ख़ामोशी

चल रही थी जब मेरे घर के जलने की तफ़्तीश
देखने के काबिल थी इस नगर की ख़ामोशी

काट ली हैं तुम ने तो टहनियाँ सभी लेकिन
सुन सको जो कहती है क्या शजर की ख़ामोशी

छोड़ दे ये चुप्पी, ये रूठना ज़रा अब तो
हो गयी है परबत-सी बित्ते भर की ख़ामोशी

देखना वो उन का चुपचाप दूर से हम को
दिल में शोर करती है उस नज़र की ख़ामोशी

जब से दोस्तों के उतरे नक़ाब चेहरे से
क्यूँ लगी है भाने अब दर-ब-दर की ख़ामोशी

पड़ गई है आदत अब साथ तेरे चलने की
बिन तेरे कटे कैसे ये सफ़र की ख़ामोशी

Rah main chand us roz chalta mila

राह में चांद उस रोज़ चलता मिला
दिल का मौसम चमकता, दमकता मिला 

देखना छुप के जो देख इक दिन लिया
फिर वो जब भी मिला तो झिझकता मिला 

जाने कैसी तपिश है तेरे जिस्म में
जो भी नज़दीक आया पिघलता मिला 

रूठ कर तुम गए छोड़ जब से मुझे
शह्‍र का कोना-कोना सिसकता मिला 

किस अदा से ये क़ातिल ने ख़ंजर लिया
कत्ल होने को दिल ख़ुद मचलता मिला 

चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों
रात भर करवटें वो बदलता मिला 

टूटती बारिशें उस पे यादें तेरी
छू के देखा तो हर दर्द रिसता मिला

Gautam rajrishi

Khol na gar mukh zara tu

खोल ना गर मुख ज़रा तू,सब तेरा हो जाएगा
गर कहेगा सच यहाँ तो हादसा हो जाएगा 

भेद की ये बात है यूँ उठ गया पर्दा अगर
तो सरे-बाज़ार कोई माजरा हो जाएगा 

इक ज़रा जो राय दें हम तो बनें गुस्ताख-दिल
वो अगर दें धमकियाँ भी, मशवरा हो जाएगा 

है नियम बाज़ार का ये जो न बदलेगा कभी
वो है सोना जो कसौटी पर ख़रा हो जाएगा 

भीड़ में यूँ भीड़ बनकर गर चलेगा उम्र भर
बढ़ न पाएगा कभी तू,गुमशुदा हो जाएगा 

सोचना क्या ये तो तेरे जेब की सरकार है
जो भी चाहे, जो भी तू ने कह दिया, हो जाएगा 

तेरी आँखों में छुपा है दर्द का सैलाब जो
एक दिन ये इस जहाँ का तज़किरा हो जाएगा 

यूँ निगाहों ही निगाहों में न हमको छेड़ तू
भोला-भाला मन हमारा मनचला हो जाएगा

Gautam rajrishi

Tu jab se alladin hua

तू जब से अल्लादिन हुआ
मैं इक चरागे-जिन हुआ 

भूलूँ तुझे? ऐसा तो कुछ
होना न था, लेकिन हुआ 

पढ़-लिख हुए बेटे बड़े
हिस्से में घर गिन-गिन हुआ 

काँटों से बचना फूल की
चाहत में कब मुमकिन हुआ 

झीलें बनीं सड़कें सभी
बारिश का जब भी दिन हुआ 

रूठा जो तू फिर तो ये घर
मानो झरोखे बिन हुआ 

आया है वो कुछ इस तरह
महफ़िल का ढब कमसिन हुआ 

Gautam rajrishi

Oothengi chilmane fir

उठेंगी चिलमनें फिर हम यहाँ देखेंगे किस-किस की
चलें,खोलें किवाड़ अब दब न जाए कोई भी सिसकी 

जलूँ जब मैं, जलाऊँ संग अपने लौ मशालों की
जलाए दीप जैसे, जब जले इक तीली माचिस की 

ज़रा-सा मुस्कुरा कर जब मेरी बेटी मुझे देखे
भुला देता हूँ दिन भर की थकन सारी मैं आफ़िस की 

सितारे उसके भी, हाँ, गर्दिशों में रेंगते देखा
कभी थी सर्ख़ियों में हर अदा की बात ही जिसकी 

हवाओं के परों पर उड़ने की यूँ तो तमन्ना थी
पड़ा जब सामने तूफ़ाँ, ज़मीं पैरों तले खिसकी 

उसी के नाम का दावा यहाँ हाक़िम की गद्‍दी पर
करे बोया फसादें जो ज़रा देखो चहुँ दिस की 

अगर जाना ही है तुमको,चले जाओ मगर सुन लो
तुम्हीं से है दीये की रौशनी, रौनक भी मजलिस की

Gautam rajrishi