Tamanna fhir machal jaye

तमन्‍ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

मुझे गम है कि मैने जिन्‍दगी में कुछ नहीं पाया
ये ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

ये दुनिया भर के झगड़े, घर के किस्‍से, काम की बातें
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

Javed akhtar

Har khushi me koi kami si hai

हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है 
हँसती आँखों में भी नमी-सी है

दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी-सी है

किसको समझायें किसकी बात नहीं 
ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है 

ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई 
गर्द इन पलकों पे जमी-सी है 

कह गए हम ये किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी-सी है 

हसरतें राख हो गईं लेकिन 
आग अब भी कहीं दबी-सी है

Jawed akhtar

Jidhar jate hai sab

जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता

जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता

मुझे पामाल* रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना, हामी भर लेना

बहुत हैं फ़ायदे इसमें मगर अच्छा नहीं लगता

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है

किसी का भी हो सर, क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता

बुलंदी पर इन्हें मिट्टी की ख़ुशबू तक  नहीं आती

ये वो शाखें हैं जिनको अब शजर* अच्छा नहीं लगता

ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नों*, ये भी जला डालो

कि सब बेघर हों और मेरा हो घर, अच्छा  नहीं लगता

– जावेद अख़्तर