इन चिराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे
Category: Javed Akhtar
Tamanna fhir machal jaye
तमन्ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
मुझे गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया
ये ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
ये दुनिया भर के झगड़े, घर के किस्से, काम की बातें
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
Javed akhtar
Bewafa
बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे
Shakl
वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में
Ummid
उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया
Har khushi me koi kami si hai
हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है
हँसती आँखों में भी नमी-सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी-सी है
किसको समझायें किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी-सी है
कह गए हम ये किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी-सी है
हसरतें राख हो गईं लेकिन
आग अब भी कहीं दबी-सी है
Jawed akhtar
Udaas
आज फिर दिल है कुछ उदास उदास
देखिये आज याद आए कौन.
Gham
कौन दोहराए वो पुरानी बात
ग़म अभी सोया है जगाए कौन
Aazmaana
वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुख झेले आज़माए कौन
Jidhar jate hai sab
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल* रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना, हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ायदे इसमें मगर अच्छा नहीं लगता
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर, क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
बुलंदी पर इन्हें मिट्टी की ख़ुशबू तक नहीं आती
ये वो शाखें हैं जिनको अब शजर* अच्छा नहीं लगता
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नों*, ये भी जला डालो
कि सब बेघर हों और मेरा हो घर, अच्छा नहीं लगता
– जावेद अख़्तर