Ahsaas

मैं कोई शे’र न भूले से कहूँगा तुझ पर 
फ़ायदा क्या जो मुकम्मल तेरी तहसीन न हो 
कैसे अल्फ़ाज़ के साँचे में ढलेगा ये जमाल 
सोचता हूँ के तेरे हुस्न की तोहीन न हो 

हर मुसव्विर ने तेरा नक़्श बनाया लेकिन 
कोई भी नक़्श तेरा अक्से-बदन बन न सका 
लब-ओ-रुख़्सार में क्या क्या न हसीं रंग भरे 
पर बनाए हुए फूलों से चमन बन न सका

हर सनम साज़ ने मर-मर से तराशा तुझको
पर ये पिघली हुई रफ़्तार कहाँ से लाता
तेरे पैरों में तो पाज़ेब पहना दी लेकिन 
तेरी पाज़ेब की झनकार कहाँ से लाता

शाइरों ने तुझे तमसील में लाना चाहा 
एक भी शे’र न मोज़ूँ तेरी तस्वीर बना
तेरी जैसी कोई शै हो तो कोई बात बने
ज़ुल्फ़ का ज़िक्र भी अल्फ़ाज़ की ज़ंजीर बना 

तुझको को कोई परे-परवाज़ नहीं छू सकता
किसी तख़्यील में ये जान कहाँ से आए
एक हलकी सी झलक तेरी मुक़य्यद करले 
कोई भी फ़न हो ये इमकान कहाँ से आए 

तेर शायाँ कोईपेरायाए-इज़हार नहीं 
सिर्फ़ वजदान में इक रंग सा भर सकती है 
मैंने सोचा है तो महसूस किया है इतना
तू निगाहों से फ़क़त दिल में उतर सकती है

Jaan nissar akhtar

Rukho ke chand labo ke gulab mange hai

रुखों के चांद, लबों के गुलाब मांगे है
बदन की प्यास, बदन की शराब मांगे है

मैं कितने लम्हे न जाने कहाँ गँवा आया
तेरी निगाह तो सारा हिसाब मांगे है

मैं किस से पूछने जाऊं कि आज हर कोई
मेरे सवाल का मुझसे जवाब मांगे है

दिल-ए-तबाह का यह हौसला भी क्या कम है
हर एक दर्द से जीने की ताब मांगे है

बजा कि वज़ा-ए-हया भी है एक चीज़ मगर
निशात-ए-दिल तुझे बे-हिजाब मांगे है

Jaan nissar akhtar

Hamne kaati hai teri yaad mein raaten aksar

हमने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर
दिल से गुज़री हैं सितारों की बरातें अक्सर

और तो कौन है जो मुझको तसल्ली देता
हाथ रख देती हैं दिल पर तिरी बातें अक्सर

हुस्न शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-अलम है शायद
ग़मज़दा लगती हैं क्यों चाँदनी रातें अक्सर

हाल कहना है किसी से तो मुख़ातिब हो कोई
कितनी दिलचस्प, हुआ करती हैं बातें अक्सर

इश्क़ रहज़न न सही, इश्क़ के हाथों फिर भी
हमने लुटती हुई देखी हैं बरातें अक्सर

हम से इक बार भी जीता है न जीतेगा कोई
वो तो हम जान के खा लेते हैं मातें अक्सर

उनसे पूछो कभी चेहरे भी पढ़े हैं तुमने
जो किताबों की किया करते हैं बातें अक्सर

हमने उन तुन्द हवाओं में जलाये हैं चिराग़
जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर

Jaan nissar akhtar

Ashaar mire yoon to zamane ke liye hai

अश्आर मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शे’र फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

आँखों में जो भर लोगे, तो काँटे-से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं

देखूँ तिरे हाथों को तो लगता है तिरे हाथ
मन्दिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं

सोचो तो बड़ी चीज़ है तहजीब बदन की
वरना तो बदन आग बुझाने के लिए हैं

ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं

Jaan nissar akhtar

Zindgi ye to nahi tujhko sawara hi na ho

ज़िन्दगी ये तो नहीं, तुझको सँवारा ही न हो
कुछ न कुछ हमने तिरा क़र्ज़ उतारा ही न हो

कू-ए-क़ातिल की बड़ी धूम है चलकर देखें
क्या ख़बर, कूचा-ए-दिलदार से प्यारा ही न हो

दिल को छू जाती है यूँ रात की आवाज़ कभी
चौंक उठता हूँ कहीं तूने पुकारा ही न हो

कभी पलकों पे चमकती है जो अश्कों की लकीर
सोचता हूँ तिरे आँचल का किनारा ही न हो

ज़िन्दगी एक ख़लिश दे के न रह जा मुझको
दर्द वो दे जो किसी तरह गवारा ही न हो

शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो

Jaan nissar akhtar

Wo aankh abhi dil ki kahan baat kare hai

वो आँख अभी दिल की कहाँ बात करे है
कमबख़्त मिले है तो सवालात करे है

वो लोग जो दीवाना-ए-आदाब-ए-वफ़ा थे
इस दौर में तू उनकी कहाँ बात करे है

क्या सोच है, मैं रात में क्यों जाग रहा हूँ
ये कौन है जो मुझसे सवालात करे है

कुछ जिसकी शिकायत है न कुछ जिसकी खुशी है
ये कौन-सा बर्ताव मिरे साथ करे है

दम साध लिया करते हैं तारों के मधुर राग
जब रात गये तेरा बदन बात करे है

हर लफ़्ज़ को छूते हुए जो काँप न जाये
बर्बाद वो अल्फ़ाज़ की औक़ात करे है

हर चन्द नया ज़ेहन दिया, हमने ग़ज़ल को
पर आज भी दिल पास-ए-रवायात करे है

Jaan nissar akhtar

A dard e ishq tujhse mukarne laga hoon main

ऐ दर्द-ए-इश्क़ तुझसे मुकरने लगा हूँ मैं
मुझको सँभाल हद से गुज़रने लगा हूँ मैं

पहले हक़ीक़तों ही से मतलब था, और अब
एक-आध बात फ़र्ज़ भी करने लगा हूँ मैं

हर आन टूटते ये अक़ीदों के सिलसिले
लगता है जैसे आज बिखरने लगा हूँ मैं

ऐ चश्म-ए-यार! मेरा सुधरना मुहाल था
तेरा कमाल है कि सुधरने लगा हूँ मैं

ये मेहर-ओ-माह, अर्ज़-ओ-समा मुझमें खो गये
इक कायनात बन के उभरने लगा हूँ मैं

इतनों का प्यार मुझसे सँभाला न जायेगा!
लोगो! तुम्हारे प्यार से डरने लगा हूँ मैं

दिल्ली! कहाँ गयीं तिरे कूचों की रौनक़ें
गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं

Jaan nissar akhtar

Isi sabab se hai shayad azab jitne hai

इसी सबब से हैं शायद, अज़ाब जितने हैं
झटक के फेंक दो पलकों पे ख़्वाब जितने हैं

वतन से इश्क़, ग़रीबी से बैर, अम्न से प्यार
सभी ने ओढ़ रखे हैं नक़ाब जितने हैं

समझ सके तो समझ ज़िन्दगी की उलझन को
सवाल उतने नहीं है, जवाब जितने हैं

Jaan nissar akhtar

Har lafz tire jism ki khushboo mein dhala hai

हर लफ़्ज़ तिरे जिस्म की खुशबू में ढला है
ये तर्ज़, ये अन्दाज-ए-सुख़न हमसे चला है

अरमान हमें एक रहा हो तो कहें भी
क्या जाने, ये दिल कितनी चिताओं में जला है

अब जैसा भी चाहें जिसे हालात बना दें
है यूँ कि कोई शख़्स बुरा है, न भला है

Jaan nissar akhtar

Ujdi ujdi hui har aas lage

उजड़ी-उजड़ी हुई हर आस लगे
ज़िन्दगी राम का बनबास लगे

तू कि बहती हुई नदिया के समान
तुझको देखूँ तो मुझे प्यास लगे

फिर भी छूना उसे आसान नहीं
इतनी दूरी पे भी, जो पास लगे

वक़्त साया-सा कोई छोड़ गया
ये जो इक दर्द का एहसास लगे

एक इक लहर किसी युग की कथा
मुझको गंगा कोई इतिहास लगे

शे’र-ओ-नग़्मे से ये वहशत तेरी
खुद तिरी रूह का इफ़्लास लगे

Jaan nissar akhtar