Apne tadapne ki mai tadbir pehle kar lu

अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का।

यह ऐश के नहीं हैं या रंग और कुछ है
हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का।

बुलबुल ग़ज़ल सराई आगे हमारे मत कर
सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का।

-Mir Taqi Mir

Bekhudi le gayi kahan hum ko

बेखुदी ले गयी कहाँ हम को
देर से इंतज़ार है अपना

रोते फिरते हैं सारी-सारी रात
अब यही रोज़गार है अपना

दे के दिल हम जो हो गए मजबूर
इस में क्या इख्तियार है अपना

कुछ नही हम मिसाले-अनका लेक
शहर-शहर इश्तेहार है अपना

जिस को तुम आसमान कहते हो
सो दिलों का गुबार है अपना

-Mir Taqi Mir

Kaha maine kitna hai gul ka sabaat

कहा मैंने कितना है गुल का सबात
कली ने यह सुनकर तब्बसुम किया

जिगर ही में एक क़तरा खूं है सरकश
पलक तक गया तो तलातुम किया

किसू वक्त पाते नहीं घर उसे
बहुत ‘मीर’ ने आप को गम किया

-Mir Taqi Mir

Bekhudi kahan le gai humko

बेखुदी कहाँ ले गई हमको,

देर से इंतज़ार है अपना

रोते फिरते हैं सारी सारी रात,

अब यही रोज़गार है अपना

दे के दिल हम जो गए मजबूर,

इस मे क्या इख्तियार है अपना

कुछ नही हम मिसाल-ऐ- उनका लेक

शहर शहर इश्तिहार है अपना

जिसको तुम आसमान कहते हो,

सो दिलो का गुबार है अपना

Mir taqi mir

Ashk aakhon main kab nahi aata

अश्क आंखों में कब नहीं आता 
लहू आता है जब नहीं आता। 

होश जाता नहीं रहा लेकिन
जब वो आता है तब नहीं आता। 

दिल से रुखसत हुई कोई ख्वाहिश
गिरिया कुछ बे-सबब नहीं आता।

इश्क का हौसला है शर्त वरना
बात का किस को ढब नहीं आता। 

जी में क्या-क्या है अपने ऐ हमदम
हर सुखन ता बा-लब नहीं आता।