बूए-गुल, नाला-ए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला।
चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला।
बूए-गुल, नाला-ए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला।
चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला।
एक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सब की दुनिया
कोई जल्दी में, कोई देर से जाने वाला
ज़िंदगी अपनी जब इस शल्क से गुज़री ‘ग़ालिब’
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे
Mirza Ghalib
मैं तबाह हूँ तेरे प्यार में और तुझे दूसरों का ख्याल है….
कुछ तो मेरे मसले पर गौर कर मेरी जिन्दगी का सवाल है…
लौट आओ वो हिस्सा लेकर, जो साथ ले गये थे तुम..
इस रिश्ते का अधूरापन अब अच्छा नही लगता….!!
जिन्दगी बहुत खूबसूरत है सब कहते थे,
जिस दिन तुम्हें देखा यकीन भी हो गया !!
जिसकी मुहब्बत में मरने के लिए तैयार थे हम
आज उसी की बेवफाई ने हमे जीना सीखा दिया
हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है, कभी तिरपाल कटता है ।
दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क़ आँखें, तो दिखाने दो
कभी बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है
मुझे रिश्तों की लम्बी कतारों से मतलब नही दोस्तों…
कोई दिल से हो मेरा तो बस इक शख्स ही काफी है…
मेरी जिंदगी मे अगर तुम ना होते…
तो आज शायरो की गिनती मे हम ना होते….