Sehar

तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई

Kucha

पीनस* में गुज़रते हैं जो कूचे से वो मेरे 
कंधा भी कहारों को बदलते नहीं देते

*पालकी
मिर्ज़ा ग़ालिब

Umr

उम्र एक तल्ख़ हक़ीकत है ‘मुनव्वर’ फिर भी
जितना तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता ।
सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता,
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता ।।

Tankhwah

जरूरतें जिम्मेंदारियां और ख्वाहिशें…….,
यूं तीन हिस्सों में तनख्वाह की तरह बंट जाता हूँ….