सोच रहा हूँ मर ही जाऊ आज…
शायद कब्र पर ही कोई गुलाब ले आये…!
सोच रहा हूँ मर ही जाऊ आज…
शायद कब्र पर ही कोई गुलाब ले आये…!
तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई
पीनस* में गुज़रते हैं जो कूचे से वो मेरे
कंधा भी कहारों को बदलते नहीं देते
*पालकी
मिर्ज़ा ग़ालिब
हथेलियों पर मेहँदी का ज़ोर ना डालिये,
दब के मर जाएँगी मेरे नाम कि लकीरें…
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ
जनाजा मेरा देखकर….बोली वो….!!
वो ही मरा क्या, जो मुझ पर मरता था….!!!
दिल जलाने की आदत उनकी आज भी नहीं गयी;
वो आज भी फूल बगल वाली कब्र पर रख जाते हैं।
उम्र एक तल्ख़ हक़ीकत है ‘मुनव्वर’ फिर भी
जितना तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता ।
सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता,
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता ।।
जरूरतें जिम्मेंदारियां और ख्वाहिशें…….,
यूं तीन हिस्सों में तनख्वाह की तरह बंट जाता हूँ….
अंग्रेजी की किताब बन गई हो तुम
पसंद तो आती हो पर समझ मे नही