Halaat se khouf kha raha hoon

हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ
शीशे के महल बना रहा हूँ

सीने में मेरे है मोम का दिल
सूरज से बदन छुपा रहा हूँ

महरूम-ए-नज़र है जो ज़माना
आईना उसे दिखा रहा हूँ

अहबाब को दे रहा हूँ धोका
चेहरे पे ख़ुशी सजा रहा हूँ

दरिया-ए-फ़ुरात है ये दुनिया
प्यासा ही पलट कर जा रहा हूँ

है शहर में क़हत पत्थरों का
जज़्बात के ज़ख़्म खा रहा हूँ

मुमकिन है जवाब दे उदासी
दर अपना ही खटखटा रहा हूँ

आया न ‘क़तील’ दोस्त कोई
सायों को गले लगा रहा हूँ

Qateel shifai

Ek dua

अब और क्या तेरा बीमार बाप देगा तुझे
बस एक दुआ कि ख़ुदा तुझको कामयाब करे
वो टाँक दे तेरे आँचल में चाँद और तारे
तू अपने वास्ते जिस को भी इंतख़ाब करे

Kaifi azmi

Bazm

बूए-गुल, नाला-ए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला।

चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला।

Sehar

तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई