Kadwahat

मियाँ ! मैं शेर हूँ, शेरों की गुर्राहट नहीं जाती,
मैं लहज़ा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती ।
किसी दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था,
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़वाहट नहीं जाती ।