Salam us par agar aisa koi fankaar ho jaye

सलाम उस पर अगर ऐसा कोई फनकार हो जाए
सियाही ख़ून बन जाए कलम तलवार हो जाए

ज़माने से कहो कुछ साएका-रफ्तार हो जाए
हमारे साथ चलने के लिए तैयार हो जाए

ज़माने को तमन्ना है तेरा दीदार करने की
मुझे ये फ्रिक है मुझ को मेरा दीदार हो जाए

वो जुल्फें साँप हैं बे-शक अगर ज़ंजीर बन जाएँ
मोहब्बत ज़हर है बे-शक अगर आज़ार हो जाए

मोहब्बत से तुम्हें सरकार कहते हैं वगरना हम
निगाहें डाल दें जिस पर वही सरकार हो जाए

Kaif bhopali

Na aaya maza shab ki tanhaiyon mein

न आया मज़ा शब की तनहाईयों में
सहर हो गई चंद अँगड़ाइयों में

न रंगीनियों में न रानाइयों में
नज़र घिर गई अपनी पराछाइयों में

मुझे मुस्कुरा मुस्कुरा कर ने देखो
मेरे साथ तुम भी हो रूसवाईयों में

गज़ब हो गया उन की महफिल से आना 
घिरा जा रहा हूँ तमाशाइयों में

मोहब्बत है या आज तर्क-ए-मोहब्बत
ज़रा मिल तो जाएँ वो तनहाइयों में

इधर आओ तुम को नज़र लग न जाए
छुपा लूँ तुम्हें दिल की गहराइयों में

अरे सुनने वालो ये नगमें नहीं है
मेरे दिल की चीखें है शहनाइयों में

वो ऐ ‘कैफ’ जिस दिन से मेरे हुए हैं
तो सारा जमाना है शैदाइयों में

Kaif bhopali

Kutiya me kon aayega is teergi ke saath

कुटिया में कौन आएगा इस तीरगी के साथ
अब ये किवाड़ बंद करो खामुशी के साथ

साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ

चलते हैं बच के शैख ओ बरहमन के साए से
अपना यही अमल है बुरे आदमी के साथ

शाइस्तगान-ए-शहर मुझे ख़्वाह कुछ कहें
सड़कों का हुस्न है मेरी आवारगी के साथ

शाएर हिकायतें न सुना वस्ल ओ इश्क की
इतना बड़ा मजाक न कर शाएरी के साथ

लिखता है गम की बात मर्सरत के मूड में
मख़्सूस है ये तर्ज़ फकत ‘कैफ’ ही के साथ

Kaif bhopali

Khankah me sufi muh mein chhupaye baitha hai

खानकाह में सूफी मुँह में छुपाए बैठा है
गालिबन ज़माने से मात खाए बैठा है

कत्ल तो नहीं बदला कत्ल की अदा बदली
तीर की जगह कातिल साज़ उठाए बैठा है

उन के चाहने वाले धूप धूप फिरते हैं
गैर उन के कूचे में साए साए बैठा है

वाह आशिक-ए-नादाँ काएनात ये तेरी
इक शिकस्ता शीशे को दिल बनाए बैठा है

दूर बारिश ऐ गुल-चीं वा है दीदा-ए-नर्गिस
आज हर गुल-ए-रंगीं खार खाए बैठा है

Kaif bhopali

Jhoom ke jab rindon ne pila di

झूम के जब रिंदों ने पिला दी
शैख़ ने चुपके चुपके दुआ दी

एक कमी थी ताज महल में
मैं ने तेरी तस्वीर लगा दी

आप ने झूठा वादा कर के
आज हमारी उम्र बढ़ा दी

हाए ये उन का तर्ज-ए-मोहब्बत
आँख से बस इक बूँद गिरा दी

Kaif bhopali

Koun aayega yahan koi na aaya hoga

कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाजा हवाओं ने हिलाया होगा

दिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क
कोई ख़त ले के पड़ौसी के घर आया होगा

इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल
तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा

दिल की किस्मत ही में लिक्खा था अँधेरा शायद
वरना मस्जिद का दिया किस ने बुझाया होगा

गुल से लिपटी हुई तितली हो गिरा कर देखो
आँधियों तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा

खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे
चाँद अब उस की गली में उतर आया होगा

‘कैफ’ परदेस में मत याद करो अपना मकाँ
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा

Kaif bhopali

Kaam yahi hai sham sawere

काम यही है शाम सवेरे
तेरी गली के सौ सौ फेरे

सामने वो हैं जुल्फ बिखेरे
कितने हसीं है आज अँधेरे

हम तो हैं तेरे पूजने वाले
पाँव न पड़वा तेरे मेरे

दिल को चुराया ख़ैर चुराया
आँख चुरा कर जा न लुटेरे

Kaif bhopali

Jab hamen masjid mein jana pada hai

जब हमें मस्जिद में जाना पड़ा है
राह में इक मै-ख़ाना पड़ा है

जाइए अब क्यूँ जानिब-ए-सहरा
शहर तो ख़ुद वीराना पड़ा है

हम न पिएँगे भीक की साकी
ले ये तेरा पैमाना पड़ा है

हरज न हो तो देखते चलिए
राह में इक दीवाना पड़ा है

खत्म हुई सब रात की महफिल
एक पर-ए-परवाना पड़ा है

Kaif bhopali

Is tarah muhabbat mein dil pe hukmrani hai

इस तरह मोहब्बत में दिल पे हुक्मरानी है
दिन नहीं मेरा गोया उन की राजधानी है

घास के घरौंदे से ज़ोर-आज़माई क्या
आँधियाँ भी पगली है बर्क भी दिवानी है

शायद उन के दामन ने पोंछ दीं मेरी आँखें
आज मेरे अश्कों का रंग ज़ाफरानी है

पूछते हो क्या बाबा क्या हुआ दिल-ए-ज़िदा
वो मेरा दिल-ए-ज़िंदा आज आँजहानी है

‘कैफ’ तुझ को दुनिया ने क्या से क्या बना डाला
यार अब मेरे मुँह पर रंग है न पानी है

Kaif bhopali

Ham ko diwana jaan ke kya julm dhaya logo ne

हम को दीवाना जान के क्या क्या जुल्म न ढाया लोगों ने
दीन छुड़ाया धर्म छुड़ाया देस छुड़ाया लोगो नें

तेरी गली में आ निकले थे दोश हमारा इतना था
पत्थर मारे तोहमत बाँधी ऐब लगाया लोगों ने

तेरी लटों में सो लेते थे बे-घर आशिक बे-घर लोग
बूढ़े बरगद आज तुझे भी काट गिराया लोगों ने

नूर-ए-सहर ने निकहत-ए-गुल ने रंग-ए-शफक ने कह दी बात
कितना कितना मेरी ज़बाँ पर कुफ्ल लगाया लोगों ने

‘मीर’ तकी के रंग का गाज़ा रू-ए-ग़जल पर आ न सका
‘कैफ’ हमारे ‘मीर’ तकी का रंग उड़ाया लोगों ने

Kaif bhopali